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उड़ रही पतंगें आसमान की ऊंचाइयों पर कब कौन सी कटे व कहां गिरे कौन जाने…

लेख –

उड़ रही पतंगें आसमान की ऊंचाइयों पर
कब कौन सी कटे व कहां गिरे कौन जाने..!
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हमारे जीवन में कई उतार चढ़ाव आते हैं, समय के साथ ये खत्म होते जाते हैं नये दौर आते जाते रहते हैं ये सिलसिले चलते रहते हैं। जीवन नैया हिचकोले खा कर चलती रहती है। यही जीवन की पतंगें आसमान की ऊंचाइयों पर उड़ान भरती है। कभी नदी में पानी की तरह तैरती है और कभी ठुंगी लगाती है, कभी खींचकर दूर ले जाती है और कभी-कभी आसमान में नई ऊंचाइयों पर पहुंच जाती है। पतंगों का भविष्य क्या है। वापस लौट आई तो सुरक्षित। कट गई तो जमीन पर और काट के आ गई तो तीस मारखां। मांजा मजबूत तो दस काटेंगे मगर पतंग उड़ाने वाला भी होना चाहिए, शानबाज कलाकार, फिर झपट्टा मारकर आसपास उड़ती पतंग काटेंगे और हिलगाऐंगे छूट गई तो
लुटाएंगे, किसी का तो भला करेंगे। पतंग के माहौल में नौसिखिए मिलते हैं तो पतंगबाजी के उस्ताद-खलीफा भी बहुतेरे हैं साथ में उनके कई शागिर्द भी बराबरी करने को उस्ताद बने बैठे हैं। कोई मैदान में और कोई अपनी या पड़ोसी की गच्ची पर
पतंगों की प्रतिस्पर्धात्मक जोशबाजी तो होना चाहिए। परंपरागत मांजो के बीच चाइनीज ने तो जान का जोखिम कर रखा है।

आदमी डरता है चाइनीज मांजो के जोखिम के डर से कहीं हम
झपेटे लपेटे में नहीं आ जाएं। फिर भी शौक है तो फिर है मनमानी तो करना है। पतंगों का उड़ना-उड़ाना तो चलता ही रहेगा। शौक कभी खत्म नहीं होता। अलग-अलग अंदाज, लखनवी अंदाज अब हज़ारों -लाखों रुपये के खर्चों के शौक हो गये है। पहले खुद बनाते थे। छोटे-मोटे दुकानदार बनाते थे।
अब तो कारखाने हो गये हैं शौक है कि आजकल दुगना – चौगुना
हो गया। आधुनिक, फैसनेबल लिबास सी हो गई है, जीवन के
फैसनेबल होने का असर यहां भी हो गया है। अभी मत पूछो यार कभी मत पूछो कि क्या आपने कभी पतंग उड़ाई बचपन में या कभी भी, कोई इंकार नहीं कर सकेगा। क्या, आपने पतंग लूटी, इससे भी कोई इंकार नहीं करेगा। कटी पतंग किसी ना किसी ने लूटी ही है, जनाब। ढग्गा, कानबाज, चांदबाज, परियल और हर कलर और नई डिजाइनर पतंगों के नये ताव-पन्नियों में अब आपको पुराने-नये चमचमाते स्वरूप में उड़ंची देओ और मुस्कराकर पतंग आसमान में फिर उड़ान का भरपूर आनंद लेओ। साथियों -दोस्तों के साथ – साथ। अभी आवाज आई है कहीं से
कानों में, काटा है और फिर कटी पतंग लूटने वालों का शौक, हुजूम आगे बड़कर गुजर गया। छीन झपट हुई और फिर एक पतंग का किस्सा खत्म हुआ।

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