सर..एसी वेटिंग रूम में बिस्तर पर कोई बूढ़ा आदमी सो रहा है..टिकट नहीं है..बाहर नहीं जा सकता” स्टेशन पर वेटिंग रूम की देखरेख करने वाली महिला ने स्टेशन मास्टर से शिकायत की…शिवश्री
यह राजमुंदरी स्टेशन है
सुबह के पांच बजे हैं…
‘ठीक है मैं आता हूँ…’ कहकर स्टेशन मास्टर उसे लेकर वेटिंग रूम में चला गया।
वहाँ एक बूढ़ा आदमी है जो फीके कपड़ों में कुर्सी पर बैठा है…
स्टेशन मास्टर उस बूढ़े आदमी को देखकर चौंक गया…शिवश्री
वह बूढ़ा आदमी कोई नहीं है
*आंध्र राज्य के पहले मुख्यमंत्री तंगुतुरी प्रकाशम पंतुलु थे…* शिवश्री
यह घटना प्रकाशम गरु…शिवश्री की मृत्यु से एक साल पहले की है
तुरंत स्टेशन मास्टर तंगुतुरी प्रकाशम पांतुलु झुके और बोले, “अया मीरा? मैं राजेश्वर राव का लड़का और आपका शिष्य हूं”…शिवश्री
प्रकाशम ने आँखें खोलीं और कहा, “क्या तुम पागल हो?” यह पूछ रहा हूँ…
स्टेशन मास्टर को पेंटुलु का सवाल समझ नहीं आया…
‘क्या किसी ने टेल्लारी में पाँच बजे कॉफ़ी पी थी? यदि नहीं तो क्या आपने टिफिन खाया है? वे पूछना। वे पूछ रहे हैं.. शायद क्योंकि वे बूढ़े हो रहे हैं, उन्हें नहीं पता कि क्या पूछना है… शिवश्री
यह सोचकर कि पंटू गारी के साथ..,
“सर, सुबह के पांच बजे हैं..क्या आपने यह पूछने की जहमत उठाई कि क्या आप कॉफी पीना चाहेंगे?” शिवश्री ने कहा।
पन्तु गरु…,
“युग, क्या यही वह संस्कृति है जो तुम्हारे पिता राजेश्वर राव ने तुम्हें सिखाई? मैंने तुमसे पूछा..क्या तुमने ऐसा किया? मैंने पूछा..तुम्हें क्या कहना चाहिए..मैंने यह किया..क्या तुमने भी ऐसा किया?”
स्टेशन मास्टर को मामला समझ आ गया..
मैं समझता हूं कि पंथुलु भूख से पीड़ित है…
उन्होंने तुरंत घरों के पास के लोगों से अपनी जरूरत की सामग्री पकाने के लिए कहा…शिवश्री
इसी बीच लोगों को पता चला कि प्रकाशम पंतुलु राजमुंदरी स्टेशन पर हैं…
“अब आप पन्तुलु गारू कहाँ जाना चाहते हैं?” एक सज्जन ने पंतुलु…शिवश्री से पूछा
“क्या आप विजयवाड़ा जाएंगे…,” पंतुलु ने कहा…
यह जानते हुए कि पांतुलु के पास पैसे नहीं हैं, मौके पर मौजूद लोगों ने दो-दो रुपये, पांच-पांच रुपये मिलाकर कुल 72 रुपये एकत्र कर पांतुलु की जेब में रख दिए और विजयवाड़ा जाने वाली ट्रेन में चढ़ गए… शिवश्री
जैसे ही ट्रेन चलने लगी तो एक आदमी दौड़ता हुआ आया और पंटू के पैरों पर गिर पड़ा.
“पंतुलु सर.. यह जानकर कि आप राजमुंदरी स्टेशन पर हैं, मैं दस मील तक दौड़ा.. मेरी पत्नी कैंसर से पीड़ित है.. वह जोर-जोर से रोने लगा…
पंथुलु ने उसे उठाया और कहा, “क्या तुम इंसानों की तरह हो, क्या तुम मुसीबत में नहीं पड़ सकते? ये 72 रुपये अभी रखो.. उसने अपनी जेब में रखे 72 रुपये उसके हाथ में रख दिए…शिवश्री
यह सब देखने वाले एक सज्जन ने कहा, “अया पंतुलु गारू..तुम्हारे जेब में जो सारा पैसा था, वह उसके हाथ में रख दिया गया है..तुम्हें अपने लिए कम से कम दस रुपये रखने चाहिए..ठीक है..किसी तरह तुम विजयवाड़ा पहुंच जाओगे..फिर से।” कोई आपको वहां चावल दे दे..कोई आपको ट्रेन से ले जाए, अगर आप सुबह रोते हैं, तो आपके लिए यह कौन सा कर्म है जो इतनी समृद्धि से जी रहे हैं?
पंथुलु ने उसके कंधे पर हाथ रखा और कहा, ‘अरे, मेरी देखभाल करने के लिए बहुत सारे लोग हैं…दुर्भाग्य से, कौन बचा है?”
उस दौर में नेता अपने लिए नहीं बल्कि जनता के लिए जीते थे…शिवश्री
मुख्यमंत्री पद पर रहते हुए भी पंथुलु गारू अपने लिए कुछ नहीं छोड़ सके…शिवश्री
*और यदि आप अब हमारे बीच ऐसे सभी राजनीतिक नेताओं के नाम जानते हैं, तो क्या आप मुझे बता सकते हैं कि क्या वे आपको याद हैं? (एक कपनिका कहानी के वी शर्मा संपादक विशाखापत्तनम दर्पण हिंदी समाचार पत्र विशाखापत्तनम आंध्र प्रदेश)