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नई दिल्ली : : उच्च न्यायालय ने कहा है कि ‘किशोरावस्था में होने वाले प्रेम’ को अदालतें नियंत्रित नहीं कर सकती हैं। ऐसे में न्यायाधीशों को प्रत्येक मामलों में तथ्यों और परिस्थितियों के आधार पर आरोपी की जमानत याचिका खारिज या मंजूर करते समय सावधान रहना होगा।
जस्टिस स्वर्णकांता शर्मा ने नाबालिग का अपहरण कर दुष्कर्म करने के आरोपी युवक को जमानत पर रिहा करने का आदेश देते हुए यह टिप्पणी की है। उन्होंने कहा है कि किशोर उम्र में लड़का-लड़की फिल्मों और उपन्यासों की रोमांटिक संस्कृति की नकल करने की कोशिश करते हैं और संबंधित कानूनों और सहमति की उम्र के बारे में अनजान रहते हैं।
उच्च न्यायालय ने कहा है कि शुरुआती प्रेम संबंधों, खासकर किशोरावस्था में प्रेम के प्रति दृष्टिकोण को उनकी वास्तविक जीवन स्थितियों की पृष्ठभूमि में छानबीन की जानी चाहिए ताकि किसी स्थिति में उनके कार्यों को समझा जा सके। जस्टिस शर्मा ने इस तथ्य पर भी ध्यान दिया कि किशोरावस्था में होने वाले प्रेम संबंधों के मामलों में निर्दोष किशोर उम्र के लड़के और लड़कियां जेल या संरक्षण गृह में खराब स्थिति में रहे हैं।
जेल में बंद करने से मानिसक स्वास्थ्य पर पड़ेगा असर जस्टिस शर्मा ने कहा, ऐसे मामलों में जेल में बंद करने से आरोपी/किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ेगा। न्यायालय ने कहा है कि जहां तक मौजूदा मामले का सवाल है, अभियोजिका (लड़की) और आरोपी से ‘दिल के मामलों में गलती हो सकती है। हालांकि, किशोर मनोविज्ञान और किशोरावस्था के प्रेम को अदालतों द्वारा नियंत्रित नहीं किया जा सकता है।’ उच्च न्यायालय ने कहा है कि ऐसे में न्यायाधीशों को इस तरह के मामलों में जमानत खारिज करने या देने के दौरान सावधान व सतर्क रहने की जरूरत है।
-युवक से शादी करना चाहती है लड़की०००
इससे पहले, आरोपी ने जमानत की मांग करते हुए कहा कि लड़की के साथ उसका प्रेम संबंध था और लड़की की सहमति से वे दिल्ली से बाहर गए थे। हालांकि पुलिस ने अदालत को बताया कि लड़की महज 16 साल की थी, ऐसे में उसकी सहमति का कोई मायने नहीं है। हालांकि अदालत में पेश होकर लड़की ने कहा कि वह अपनी मर्जी से युवक के साथ गई थी। लड़की ने खुद को बालिग बताया और कहा कि जब वह याचिकाकर्ता के साथ गई थी, तब उसकी उम्र 18 साल थी। हालांकि इस बारे में दस्तावेज पेश नहीं कर पाई।