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लखनऊ : : पिछले कई चुनावों से हाशिए पर चल रही बसपा अब अपने परम्परागत वोट बैंक की घर वापसी के लिए आरक्षण के मुद्दे पर फ्रंटफुट पर खेलने का मूड बना लिया है. इसकी बानगी उत्तर प्रदेश की 10 विधानसभा सीटों पर होने वाले उपचुनाव को देखने को मिलेगी।
बसपा सुप्रीमो मायावती ने जहां सभी 10 सीटों पर प्रत्याशी उतारने का ऐलान किया है, वहीं सुप्रीम कोर्ट के कोटा के भीतर कोटा वाले फैसले से असहमति जता दी हैं. लिहाजा सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को पार्टी अपने लिए संजीवनी मान रही है. यही वजह है कि इन चुनावों में बसपा आरक्षण में वर्गीकरण के मुद्दे को जोरशोर से उठाएगी. इसके लिए पार्टी ने खास प्लान तैयार किया है. इसके तहत पार्टी के कार्यकर्ता घर-घर जाकर मायावती की प्रेस कांफ्रेंस में कही गई बातों की प्रतियां बांटेंगे. इसमें यह बताने का प्रयास किया जाएगा कि कैसे दूसरे दल उन्हें भ्रमित करने की कोशिश कर रहे हैं।
रविवार को लखनऊ में हुई बैठक में मायावती ने इस संबंध में पार्टी पदाधिकारियों को नर्देश दिए. मायवती ने कहा कि अभी उपचुनाव की तारीखों की घोषणा नहीं हुई है, लेकिन सभी दल तैयारियों में जुटे हैं. ऐसे बसपा को भी पूरी ताकत लगानी होगी. उन्होंने कहा कि बीजेपी पर लोगों का भरोसा टूटा है. आरक्षण के मुद्दे पर सपा, कांग्रेस और बीजेपी को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि सभी दलों की सरकारों में किसी न किसी तरह से इसे खत्म करने का प्रयास किया गया. उन्होंने अनुसूचित जाती के आरक्षण में वर्गीकरण को भी इसी कोशिश का हिस्सा बताया।
उधर आरक्षण के मुद्दे पर मायावती के सख्त रुख के बाद बीजेपी और समाजवादी पार्टी ने भी प्रतिक्रिया दी है. बीजेपी की तरफ से जहां कहा गया है कि पार्टी आर्कषण का समर्थन करती है और संविधान के साथ खड़ी है. वहीं दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी ने एक बार फिर बसपा को वोट कटवा बताने की कोशिश की. बीजेपी प्रवक्ता राकेश त्रिपाठी ने कहा कि उनकी पार्टी हमेशा से ही आरक्षण की पक्षधर रही है. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता दीपक रंजन ने कहा कि पार्टी उपचुनाव में ऐसे प्रत्याशी उतारे जो किसी के लिए वोट कटवा साबित न हो।
दरअसल, मायावती का यह दांव अगर चला तो विपक्षी दलों का नुकसान तय माना जा रहा है. हाल ही में संपन्न हुए लोकसभा चुनाव में इंडिया गठबंधन को दलित वोट मिला जिसकी वजह से साजवादी पार्टी को 37 सीटें हासिल हुई तो वहीं कांग्रेस को भी 6 सीटें मिल गई. उधर सत्तारूढ़ बीजेपी के लिए यह उपचुनाव किसी प्रतिष्ठा से कम नहीं है, ऐसे में दलित वोट को सहेजना उसकी भी मजबूरी है।