सुब्रह्मण्य अष्टकम करावलम्ब स्तोत्रम
हे स्वामीनाथ करुणाकर दिनबंधो,
श्री पार्वतीशमुखपंकज पद्मबंधो।
श्रीशादिदेवगणपूजितपद्म,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम॥ 1॥
देवादिदेवानुता देवगनाधिनाथ,
देवेंद्रवंद्य मृदुपंकजमंजुपाद।
देवर्षिनारदमुनिंद्रसुगिताकीर्ते,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम॥ 2॥
निरतखिला रोगहरिन,
तस्मत्प्रदना परियम भक्तकाम।
श्रुत्यगमप्राणववचन्यनिजस्वरूपा,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम॥ 3॥
क्रौंचसुरेंद्र परिखंडन शक्तिसूला,
पाषादिसास्त्रपरिमंडितदिव्यापने।
श्रीकुंडलीशा धृततुंड शिखिन्द्रवाह,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम॥ 4॥
देवादिदेव के रथों के बीच वेद्य,
देवेंद्र पीठानगरम मजबूत है।
शूराम निहत्य सुरकोटिबिरिद्यमना,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम॥ 5॥
हरदिरत्नमनियुक्तकिरिताहारा,
केउरकुंडललसत्कवच्छभिराम।
हे वीरा तारक जयमारबृंदावनद्य,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम॥ 6
पंचाक्षरादिमनुमन्त्रिता गंगातोयैः,
पंचामृतैः प्रमुदितेन्द्रमुखैरमुनिन्द्रैः।
ताज पहनाया हरयुक्ता परसनाथ,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम॥ 7
श्रीकार्तिकेय करुणामृत पूर्णादृष्टा,
कामदिरोग ने दुष्ट मन को दूषित किया।
भक्त्वा तु ममवकालधर कांतिकांत्य,
वल्लीसनाथ मम देहि करावलम्बम॥ 8
सुब्रह्मण्य करावलम्बम पुण्यं ये पथन्ति द्विजोत्तमः।
ते सर्वे मुक्ति मयंती सुब्रह्मण्य प्रसादः।
सुब्रह्मण्य करावलंबमिदं प्रतरुतथय यह पथेत।
कोटिजन्मकृतं पापं तत्क्षणदेव नस्यति|के.वी. शर्मा वरिष्ट हिंदी पत्रिका विशाखापत्तनम।