प्रशांति निलयम में लिखा गया “आज का सुविचार”, ३० सितम्बर, २०२४
हमें अपने भगवान को क्या वचन देना चाहिए और प्रतिदिन उसका पालन कैसे करना चाहिए? भगवान प्रेमपूर्वक आज हमें, उनकी ओर बढऩे की इस यात्रा का मार्गदर्शन कर रहे हैं।
सदा अपने स्वयं को दूसरों की स्थिति में रखकर देखो और उसी पृष्ठभूमि में अपने कार्यों का मूल्यांकन करो। तब तुम गलत नहीं रहोगे। अपने वचन और कर्म में शुद्ध बनो और अशुद्ध विचारों को दूर रखो। मैं तुम में से प्रत्येक में उपस्थित हूँ और इसलिए मैं तुम्हारे प्रत्येक विचार के छोटे से छोटे तरंग से भी अवगत रहता हूँ। जब कपड़े गंदे हो जाते हैं, तो तुम्हें उन्हें धोने के लिए देना पड़ता है। जब तुम्हारा मन गंदा हो जाता है, तो इसे शुद्ध करने के लिए तुम्हें पुनः जन्म लेना पड़ता है। धोबी कपड़े को कठोर पत्थर पर पीट कर धोता है और सिलवटों को सीधा करने के लिए उस पर गर्म इस्त्री चलाता है। इसी प्रकार, तुम्हें भी भगवान तक पहुंचने के योग्य बनने के लिए, कष्टों की एक श्रृंखला से गुज़रना होगा। प्रत्येक व्यक्ति में मुझे निवासी के रूप में देखो, उनकी जितनी सहायता कर सकते हो, उतनी करो, जितनी सेवा कर सकते हो, उतनी करो, मधुर वचन, सहायता प्रदान करने वाले हाथ, आश्वस्त करने वाली मुस्कान, सांत्वना देने वाली संगति और सांत्वना देने वाले वार्तालाप को कभी मत रोको।
-दिव्योद्बोधन, ११ अक्तूबर १९६९
श्री सत्य साई मिडिया सेण्टर