*प्रेम और पथिक*
तू ही मेरी राह है, तेरा ही इंतज़ार करता हूँ,
दिकु, हर शाम तेरी चाहत में यूँ बसर करता हूँ।
तेरे बिना हर दीया बुझा सा लगता है,
तेरी हंसी की रौशनी का ही सहारा करता हूँ।
तेरी आहट की उम्मीद से ये दिल महकता है,
तेरी राह तकता हूँ और सारा जहां सहारा करता हूँ।
तेरे आने की आस में हर खुशी को जी लेता हूँ,
तेरे बिन भी तेरी बाहों का एहसास संजोकर रखता हूँ।
रात के अंधेरों में, जब तेरा नाम पुकारता हूँ,
तेरी गैर मौजूदगी में तुझसे ही बातें कर लेता हूँ।
तेरे बिना ये तमन्ना और तीव्र हो जाती है,
दिकु, तुझे पाने की चाहत ही मेरे जीवन का सरूर हो जाती है।
तेरे ख्यालों में लिपटा, ये दिल हर दीवार पर तेरा नाम लिखता है,
तू मेरे पास होगी, यही ख्वाब हर पल बुनता हूँ और खुद को सुकून देता है।
*प्रेम का इंतज़ार अपनी दिकु के लिए*
प्रेम ठक्कर “दिकुप्रेमी°