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‘आगरा : : सागर से मिलकर नदी का पानी खारा हो जाता है इसीलिए मां गंगा अपने अमृत रूपी जल की एक-एक बूंद धरती को देकर ही समुद्र में मिलती है। यह मां गंगा की धरती के प्राणियों के प्रति वात्सल्य भावना है जिसके कारण वह अपने पवित्र जल का अधिकतम लाभ जीवो को देती है। इसका साक्ष्य हम मां गंगा के सुंदरवन के डेल्टा के रूप में देख सकते हैं जो विश्व का सबसे बड़ा डेल्टा है।’ श्रीगोपालजी धाम, दयालबाग में चल रही कथा में कथावाचक डॉ दीपिका उपाध्याय ने यह प्रवचन दिए।
गुरुदीपिका योगक्षेम फाउंडेशन के तत्वावधान में चल रही त्रिदिवसीय श्रीगंगा कथा का आज समापन हुआ। इस अवसर पर कथावाचक ने उपस्थित गंगा भक्तों को राजा सगर तथा उनके पुत्रों की कथा सुनाई। राजा सगर का प्रसंग बताता है कि पुत्रहीन बालक का जीवन कितना कठिन होता है। ऋषि वशिष्ठ से चर्चा करते हुए राजा सगर का वक्तव्य आधुनिक समय में बड़ा ही महत्वपूर्ण है। राजा सगर दुष्टों को दंडित करते हुए कहते हैं कि क्रूर स्वभाव का दुष्ट व्यक्ति कितना ही दास भाव से क्यों ना आए, उस पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए।
राजा सगर के साठ हजार पुत्रों का करुण अंत बताता है कि कभी भी शक्ति संपन्न होने पर अभिमान नहीं करना चाहिए। अभिमान और मनमाने आचरण के कारण ही वह सब के सब भस्म हो गए। वस्तुत: इन्हें कपिल मुनि की योगदृष्टि से पहले उन्हें उनके दंभ ने ही नष्ट कर दिया था।
राजा सगर के पुत्रों की मुक्ति के लिए उनके पौत्र अंशुमान की तपस्या यह बताती है कि पितरों की मुक्ति के लिए हर संभव तथा असंभव प्रयास करने चाहिए। राजा अंशुमान के पौत्र भगीरथ कठोर तपस्या द्वारा मां गंगा को धरती पर लाए। तब से आज तक गंगा मां धरती पर ही रहकर मनुष्यों का कल्याण कर रही हैं। आज की सबसे बड़ी आवश्यकता गंगा माता की स्वच्छता और अविरल धारा है जिससे आने वाली पीढ़ियों को भी उनका सानिध्य सदैव प्राप्त होता रहे।
इस अवसर पर गुरुदीपिका योगक्षेम फाउंडेशन के निदेशक रवि शर्मा द्वारा फाउंडेशन के अनन्य सहयोगी देवेंद्र गोयल का माला पहना कर सम्मान किया गया। मां गंगा के जयकारों एवं कीर्तन के साथ कथा का समापन हुआ।