बसंत में लिख दूं पाती तेरे नाम की !
—-
ढाई आखर लिखुं या दो लिखुं,
प्यार, प्रेम लिख दूं और ओढूं चादर
मोरे कान्हा, मोरे शाम की, पवन
तीर सी चुभ रही, भौंरे गुनगुना रहे !
कलियां खिल रही, फुल मुस्करा रहे,
हरियाली छायी, बागवान की,
क्या हो रहा मन में एक ठौर लगता
नहीं, चितवन चित हर लई, कोई
आयेगा, दिल चुरा के ले जायेगा !
पावन बसंत जी भर के
खिलखिलाऐगा, मन जैसे मुस्कराऐगा,
तनमन हर्षित बागवान हो जाऐगा,
बसंत में लिख दूं पाती तेरे नाम की,
ढाई आखर लिखुं या दो लिखुं,
प्यार, प्रेम लिख दूं और ओढूं चादर
मोरे कान्हा, मोरे शाम की !
– मदन वर्मा ” माणिक ”
इंदौर, मध्यप्रदेश
(स्वरचित व मौलिक)