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‘लखनऊ: : बूढ़ी काकी’ का मार्मिक मंचन को कशिश आर्टस एण्ड वेलफेयर सोसाइटी लखनऊ के द्वारा आयोजित तीन दिवसीय नाट्य समारोह (प्रेमचन्द रंगोत्सव) के अंतर्गत, द्वितीय संध्या में कशिश आर्टस एण्ड वेलफेयर सोसाइटी के बैनर तले मुंशी प्रेमचन्द्र द्वारा लिखित नाट्यकृति ‘बूढ़ी काकी’ का नाट्य मंचन निर्देशिका रत्ना अग्रवाल के निर्देशिन में अंतर्राष्ट्रीय बौद्ध शोध संस्थान, गोमती नगर, लखनऊ में भारत सरकार संस्कृति मंत्रालय नई दिल्ली के सहयोग से किया गया।
नाटक के कथा की केन्द्र बिन्दू बूढ़ी काकी है। काकी के पति एवं बच्चों की असमय मृत्यु हो जाती है। अथाह सम्पत्ति की मालकिन काकी को उनका भतीजा बुद्धिराम सहारा देता है। पहले तो बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा काकी की सेवा सतकार में लगे रहते हैं फिर एक दिन शहरी मैडम से मिल कर काकी की सारी सम्पत्ति बेच देते हैं। बुद्धिराम की लाडली जो दादी का एक मात्र सहारा है। उसे अपने माता पिता का दादी के साथ किया गया व्यवहार बिल्कुल अच्छा नहीं लगता काकी को घर में एक-एक रोटी के लिए तरसा दिया जाता है। जब बुद्धिराम के बेटे सुखराम का तिलक होता है तो बुद्धिराम और उसकी पत्नी रूपा पूरे गाँव को न्योता देती है। लेकिन वह बूढ़ी काकी के साथ बुरा व्यवहार करती है एवं दुत्कारती है। रूपा के मनसूबों में उसका भाई राधे उसका साथ देता है। तिलक के बाद बुद्धिराम अपनी पत्नी से कहता है कि शहरी मैडम आने वाली हैं। अब हमें घर खाली करना पड़ेगा इतने में शहरी मैडम आ जाती है और कहती है कि बुद्धिराम तुम मुझे पहचान नहीं पाये मैं गाँव के ही गरीब मोची की बेटी हूँ मुझे काकी ने ही पढ़ाया लिखाया आज मैं इतनी बड़ी अधिकारी बनी इसी लिए मैंने तुमसे काकी का यहाँ मकान-दुकान एवं जमीन खरीद लिया। शहरी मैडम काकी से कहती है कि आप काका की यादों के साथ घर में रहिये ये घर आप का ही है, सदैव आपका ही रहेगा। ये सुनने से पहले ही काकी के प्राण निकल जाते हैं। और यही कहानी का समापन हो जाता है।
मंच पर बूढ़ी काकी की भूमिका में रत्ना अग्रवाल जी ने जीवन्त अभिनय की छाप छोड़ी, एवं लाडली की भूमिका में दिशा धमेजा का अभिनय सराहनीय रहा।
मंच परे प्रकाश- तमाल बोस, संगीत- डॉ० स्वपनिल अग्रवाल, रूपसज्जा- शाहिर अहमद एवं सेट निर्माण- आशुतोष विश्वकर्मा
इसके अलावा नाटक ‘‘बूढ़ी काकी’’ को रत्ना अग्रवाल ने अपने दमदार निर्देशन एवं मार्मिक अभिनय से जीवन्त कर दिया।
सम्पूर्ण दृश्य परिकल्पना एवं निर्देशन रत्ना अग्रवाल का था।