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***जेडीन्यूज़ विज़न ***

ईश्वर को हमारे द्वारा चढ़ाया हुआ कौन सा प्रसाद सबसे अधिक प्रिय है? भगवान आज हमें अत्यंत स्पष्ट शब्दों में प्रेमपूर्वक याद दिलाते हैं।

केवल प्रेम के लिए ही प्रेम करें; इसे भौतिक वस्तुओं की खातिर, या सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए अभिव्यक्त न करो। इच्छा, क्रोध को जन्म देती है, क्रोध से पाप उत्तेजित होता है, क्योंकि इसके प्रभाव से मित्र, शत्रु जैसे दिखाई देते हैं। हर प्रकार की विपत्ति के मूल में क्रोध ही है। इसलिए इसका शिकार न बनो। हर एक के साथ, चाहे कोई भी हो, सम्पूर्ण करुणामयी प्रेम के साथ व्यवहार करो।

समस्त मानव जाति की सहज प्रतिक्रिया, सहानुभूति होनी चाहिए। अंदर जाने वाली और बाहर आने वाली हर सांस को प्रेम से भर दो। आने वाले हर पल को प्रेम में डुबो दो। प्रेम को कोई भय नही है। प्रेम,असत्य से दूर रहता है। भय मनुष्य को असत्य, अन्याय और बुराई की ओर खींचता है। प्रेम प्रशंसा की लालसा नहीं रखता; वही उस की ताकत है।

जिनमें प्रेम नहीं है, केवल वे ही पुरस्कार व मान – सम्मान के लिए लालायित रहते है। प्रेम का पुरस्कार, स्वयं प्रेम ही है।

– दिव्योद्बोधन, २९ जुलाई, १९६९
श्री सत्यसाई प्रसार-माध्यम केन्द्र

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