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मेरे मानस के राम : (अध्याय 24) लंका चढ़ाई की तैयारी…

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मेरे मानस के राम:(अध्याय 24)लंका चढ़ाई की तैयारी

रामचंद्र जी ने हनुमान जी के लंका से सकुशल लौट आने और सीता जी के बारे में सारी जानकारी हनुमान जी से लेकर सर्वप्रथम उन्होंने हनुमान जी का ही अभिनंदन किया। अब उनके सामने एक ही चुनौती थी कि किस प्रकार लंका के राजा रावण का विनाश किया जाए और सीता जी को वहां से सकुशल लाया जाए ? इसके लिए उन्होंने अपने विश्वसनीय साथियों की सभा आहूत की और उस सभा के सामने अपने मन की बात को रख दिया।

वास्तविकता को जानकर , राम हुए प्रसन्न।
सभा बुलाकर कह दिया, जो कहता था मन।।

लगे बनाने योजना , क्या करना अब शेष।
सीता जी आवें यहां, किस विधि अपने देश।।

हनुमान के कृत्य को, लगे सराहने राम।
जो कुछ भी तुमने किया, अभिनंदन हनुमान।।

मन मेरा मुझसे कहे , दे दूं क्या पुरस्कार।
जो कुछ भी तुमने किया , गाये गीत संसार।।

इतिहास आपकी वंदना, करे वीर हनुमान।
मित्र बने तो आप सा, देता रहे मिसाल।।

जब तक सूरज चांद हैं , रहे आपका नाम।
अभिनंदन है आपका , बार-बार हनुमान।।

यद्यपि श्री राम उस समय वीर हनुमान का अभिनंदन करने में किसी प्रकार की कंजूसी नहीं कर रहे थे, पर फिर भी उनके चेहरे पर चिंता के भाव भी पढ़े जा सकते थे। जो स्पष्ट कर रहे थे कि अपने सीमित साधनों के चलते वह बड़े काम को करने जा रहे हैं?
उनके चेहरे पर आये पीड़ा के इन भावों को उनके साथी सुग्रीव ने भांप लिया।

राम की पीड़ा देखकर , बोले – वानर राज।
शोक त्याग – आगे बढ़ो, शेष पड़ा महाकाज।।

क्रोध को धारण कीजिए , धर्म यही है आज।
नीच अधर्मी मारकर , निर्भय करो समाज।।

महापुरुषों का क्रोध संसार से दुष्टता को मिटाने के लिए होता है। जनसाधारण के कल्याण के लिए आतंकवादी शक्तियों का विनाश होना आवश्यक होता है। जिन्हें बिना क्रोध के मिटाया जाना संभव नहीं है। श्री राम जी को यदि कभी क्रोध आया है तो वह आतंकवादी शक्तियों के विरुद्ध आया है। जिन्हें उस समय राक्षस के नाम से पुकारा जाता था। सुग्रीव ने श्री राम से कहा कि इस समय आपको क्रोध करने की आवश्यकता है। इसका अभिप्राय था कि देश,काल, उपस्थिति के अनुसार सुग्रीव ने श्री राम को उनका धर्म स्मरण करा दिया।

सुनी बात सुग्रीव की , राम को आया क्रोध।
तैयारी करो युद्ध की , भर गया मन में जोश।।

आदेश दिया सुग्रीव को , करो सभी प्रस्थान।
शुभ मुहूर्त चल रहा, समय सही लो जान।।

उत्साहित सब हो गए, सुना राम उपदेश।
प्रस्थान करने लगे, भय का नहीं लवलेश।।

समुद्र तट पर आ टिके, सब के सब महावीर।
धनुष हाथ सबके सजे , कंधे पर थे तीर।।

(डॉ राकेश कुमार आर्य)

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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