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मेरे मानस के राम ( अध्याय 39 ) मेघनाद ने किया राम और लक्ष्मण को अधमरा…

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मेरे मानस के राम(अध्याय 39)मेघनाद ने किया राम और लक्ष्मण को अधमरा…

विभीषण और हनुमान जी, लेकर हाथ मशाल ।
घूम रहे रणभूमि में , लाशें पड़ीं विशाल।।

जामवंत भी हो गए , घायल थे गंभीर।
विभीषण जी के साथ में, पहुंचे हनुमत वीर ।।

जामवंत जी बहुत ही विद्वान व्यक्ति थे। वह विद्वान के साथ-साथ एक अच्छे-अच्छे चिकित्सक भी थे। उन्होंने रामचंद्र जी और लक्ष्मण जी की स्थिति को देखा और उसके पश्चात उन्होंने पवन पुत्र हनुमान जी को कुछ खास निर्देश दिए। इस प्रकार के प्रकरणों से हमें यह बात समझनी चाहिए कि हमारे देश की चिकित्सा पद्धति बहुत ही उच्चतम श्रेणी की थी। उस समय गंभीर रूप से घायल लोग भी कुछ विशेष औषधियों के लेपन से ठीक हो जाया करते थे। जिनका ज्ञान हमारे पूर्वजों को था। आज इस आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को कुछ लोग भारत से मिटाने का प्रयास कर रहे हैं। सचमुच ऐसे लोगों की बुद्धि पर तरस आता है।

जामवंत कहने लगे – पवन पुत्र सुनो बात।
जितने भी घायल यहां, शीघ्र करो उपचार ।।

समय बुरा पहचानिए , समय-समय की बात।
एक समय सुख देत है , एक मारता लात।।

समय सबक देता कभी , कभी परीक्षा खास।
कभी समय सम्मान दे, कभी ना डाले घास।।

आज समय प्रतिकूल है , कल होगा अनुकूल।
समय सभी को देत है, उत्तर समय अनुकूल।।

समय तुम्हारे पास कम , लक्ष्य है बड़ा महान।
पर्वत से ले आइए, औषधियां हनुमान ।।

( यह बात भ्रांतिजनक है कि शक्ति अकेले लक्ष्मण को लगी थी। उस दिन लक्ष्मण के साथ-साथ रामचंद्र जी भी मूर्छित थे। इसके साथ-साथ अनेक वानर सेनापति भी इसी अवस्था को प्राप्त हो गए थे । तब जामवंत ने हनुमान जी को इन सबको ठीक करने के लिए संजीवनी बूटी लाने के लिए कैलाश पर्वत की ओर प्रस्थान करने का आदेश दिया था। संजीवनी बूटी के साथ-साथ उन्होंने विशल्यकरणी अर्थात घाव अच्छा करने वाली, संधानकरणी अर्थात घाव भरने पर खाल को जोड़कर पहले जैसी करने और हड्डी को जोड़ने वाली औषधि के साथ-साथ सावर्ण्यकरणी अर्थात घाव का रंग बदलकर पूर्ववत कर देने वाली औषधि लाने का भी आदेश दिया था। इसके साथ-साथ इन सब का उन्होंने अलग-अलग वर्णन कर, उनकी पहचान भी हनुमान जी को बताई थी। यह बात मिथ्या है कि उस दिन सुषेण वैद्य की कोई भूमिका रही थी। वह घटना आगे चलकर हुई, जब कुंभकर्ण ने नहीं , अपितु रावण ने लक्ष्मण जी को गंभीर रूप से घायल किया था। तब उनकी चिकित्सा के लिए रामचंद्र जी ने कपिराज सुषेण को बुलाया तो उन्होंने हनुमान जी से कहा कि लक्ष्मण जी के उपचार के लिए आप पुनः वही औषधि लेकर आओ, जिसे आप पूर्व में जांबवान के कहने से हिमालय से लेकर आए थे। )

बूटी लाकर दीजिए , संजीवन जिसका नाम।
मरे को वह जीवित करे , अद्भुत उसका काम।।

पवन पुत्र कैलाश से , ले आए भंडार ।
औषधियों की गंध से , सबका हुआ उपचार ।।

वानर दल की हो गई , विपदा सारी दूर।
सर्वत्र हर्ष – आनन्द का , बिखर गया था नूर।।

(डॉ राकेश कुमार आर्य)

( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता है। )

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