(जेडी न्यूज विज़न)
माँ चंद्रघंटा
महिषासुर ने इंद्र का सिंहासन,
जब पल में छीन लिया l
थर -थर काँपे सभी देवता,
इंद्र को इतना दीन किया ll
सभी देवताओं को जब,
महिषासुर की इच्छा पता चली l
ब्रह्मा, विष्णु, महेश पास में,
देवों की टोली तभी चली ll
सभी देव परेशान हो गए,
उनकी एक न चलती थी l
ब्रह्मा, विष्णु, महेश की,
आँखों में ज्वाला जलती थी ll
उसी क्रोध के वशीभूत हो,
चंद्रघंटा माता प्रकट हुई l
मस्तक पर अर्ध -चंद्र लेकर,
वह भी इतनी विकट हुई ll
केसर खीर भोग में माता,
पंचामृत भी लाया हूँ l
दूध, दही, घी, शहद और,
गंगाजल मिश्रित लाया हूँ ll
चंद्रघंटा भक्तों के मन को,
शांति सदा देने वाली l
हाथों में लिए खडग भारी,
शेर पर सवार माँ शेरा वाली ll
माँ भक्त तुम्हारे सामने,
अपना शीश झुकाता है l
चंदा के सम शीतल हो,
मन शीतलता लाता है ll
स्वरचित मौलिक अप्रकाशित है
डॉ. बिश्वम्भर दयाल अवस्थी
शिक्षक एवं साहित्यकार
मो. 271 मुरारी नगर सिद्धेश्वर रोड,
गली. नं 4खुर्जा,, बुलंदशहर (उ. प्र.)203131