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अगले साल अधिक व्यापक होगा भागीदारी उत्सव – असीम अरुण…

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अंतरराष्ट्रीय भागीदारी उत्सव में भगवान बिरसा मुंडा नाटक बना आकर्षण का केन्द्र…

उत्सव के समापन दिवस छठे दिन “जनजाति विकास में गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका” विषय पर संगोष्ठी भी हुई….

लखनऊ 20 नवम्बर: :  जनजाति विकास विभाग उत्तर प्रदेश, उत्तर प्रदेश लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान और उत्तर प्रदेश संगीत नाटक अकादमी द्वारा आयोजित लोक नायक बिरसा मुण्डा की जयंती “जनजातीय गौरव दिवस” के अवसर पर आयोजित “अंतरराष्ट्रीय भागीदारी उत्सव” के अंतिम दिन बुधवार 20 को मध्य प्रदेश से आमंत्रित दल ने भगवान बिरसा मुंडा का प्रेरक नाटक मंचित कर प्रशंसा हासिल की। समापन समारोह के विशेष सत्र में समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार असीम अरुण, समाज कल्याण विभाग के राज्यमंत्री संजीव कुमार गौड़, उत्तर प्रदेश अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष बैजनाथ रावत, भाजपा अनुसूचित जनजाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष डा. संजय गौड़, प्रमुख सचिव समाज कल्याण डॉ. हरिओम, प्रमुख सचिव संस्कृति विभाग मुकेश कुमार मेश्राम उपस्थित रहे।
समापन समारोह में अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण के राज्यमंत्री स्वतंत्र प्रभार असीम अरुण ने कहा कि यह हमारे लिए बहुत गर्व की बात है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने आदिवासी जनजाति के जननायक भगवान बिरसा मुंडा की जयंती को जनजाति गौरव दिवस घोषित किया है। हर साल इस आयोजन को और वृहद किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि इस अवसर पर प्रतिदिन सारगर्भित संगोष्ठियां भी हुई। इन संगोष्ठियों से प्राप्त इनपुट के आधार पर जल्द ही योजनाओं को और विस्तार दिया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि आमंत्रित कलाकारों को भ्रमण के माध्यम से लखनऊ की संस्कृति से भी रूबरू करवाया गया। उन्होंने आश्वस्त किया कि अगले साल से इस उत्सव को और विस्तार दिया जाएगा। उन्होंने धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान’ के माध्यम से हो रहे विकास कार्यों की भी जानकारी दी। इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जनजातियों को शिक्षा, स्वास्थ्य सड़क आदि से जोड़कर उनका विकास सुनिश्चित किया जा रहा है। समापन समारोह में उत्तर प्रदेश समाज कल्याण विभाग के प्रमुख सचिव डॉ. हरिओम ने धन्यवाद ज्ञापित किया। इसके अवसर पर आमंत्रित कलाकारों ने अतिथियों के साथ यादगार सामूहिक चित्र भी खिंचवाया और सामूहिक प्रस्तुतियां देकर देश की उन्नत थाती का प्रदर्शन किया। इस क्रम में आए अतिथियों का प्रमुख सचिव समाज कल्याण डॉ. हरिओम ने धन्यवाद ज्ञापित किया। आमंत्रित अतिथियों ने हस्तशिल्प मेले का भी जायज़ा भी लिया।

इस अवसर सांस्कृतिक स्रोत एवं प्रशिक्षण परिषद नई दिल्ली द्वारा डिजिटल डिस्ट्रिक्ट डिपॉस्टरी के अंतर्गत प्रथम आयीं सिम्पी मौर्या और दूसरे स्थान पर रहीं शिखा भदौरिया का सम्मान किया गया। इसी क्रम में राष्ट्रीय आदिवासी छात्र शिक्षा समिति नई दिल्ली द्वारा आयोजित राष्ट्रीय स्तर के पांचवें नेशनल कल्चरल एंड लिटरेरी फेस्ट एंड कला उत्पाद 2024 में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय से द्वितीय पुरस्कार विजेता दल का भी सम्मान किया गया। समूह लोक नृत्य में एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय सोनहा-खीरी के कक्षा 11 की नैंसी, आस्था, सलोनी, रिंकी और लोकल क्राफ्ट प्रतियोगिता में बहराइच से कक्षा 9 की रोशनी को सम्मानित किया गया।
अलका निवेदन के कुशल मंचीय संचालन में हुए सांस्कृतिक कार्यक्रम में मध्य प्रदेश के दल द्वारा जन नायक बिरसा मुंडा पर प्रेरक नाटक का मंचन राजकुमार रायकवाड़ के निर्देशन में किया गया। इसमें एक सामान्य युवक के मानवीय पक्षों को उजागर करते हुए उसके संगठनात्मक शक्ति के साथ दूसरों की सेवा करने का महान भाव प्रभावी रूप से दर्शाया गया। इसी का परिणाम था कि लोगों ने उन्हें सम्मान देते हुए धरती का भगवान तक कह डाला। इसमें दिव्यांग, पूर्वी, विशाल, भूपेन्द्र, अरुण, सुनीता, सीमा, प्रिंस, राजेश, अखिलेश, भरत, बृजेश, मनोज, रमन, सपना, उमंग, सक्षम, महेन्द्र, गणेश, प्रयाग, अभिषेक, तनवीर, अमन ने विभिन्न किरदार अदा किये।
इसके साथ ही पंजाब का शम्मी नृत्य सतवीर कौर बग्गा के निर्देशन में किया गया। बताते चले कि यह नृत्य बाजीगर, राय, लोबना और सांसी जनजातियों की महिलाओं द्वारा किया जाता है। ऐसा कहा जाता है कि यह नृत्य मूल रूप से राजस्थान के राजकुमार से जुदा हुई मारवाड़ की राजकुमारी सम्मी द्वारा किया गया था। इस महिला नृत्य में प्रेमिका का उल्लास, प्रेम और श्रंगार जोश के साथ प्रस्तुत किया जाता है। जबकि झारखण्ड का खड़िया नृत्य अनीता डुगडुग के निर्देशन में किया गया। इसमें कमर में हाथ डालकर महिलाएं एक घेरे में ढोल के थाप के साथ आगे पीछे चलकर सुंदर संयोजन का प्रदर्शन करती हैं। इसमें कलाकारों के सिर पर मोर भी शोभायमान हो रहा था। सिक्किम का लेपचा नृत्य पिनसुख के निर्देशन में पेश किया गया। इस नृत्य की खासियत यह है कि यह संदेश देता है कि जिस तरह हम लोगों को आजादी पसंद है ठीक उसी तरह जंगल के पशु पक्षियों को भी स्वतंत्रता भाती है। इसलिए हमें एक दूसरे का सम्मान करना चाहिए। दूसरी ओर असम के दल ने पारंपरिक बर्दोई शिखला नृत्य किया। इसमें महिलाओं ने लाल पीले रंग की वेशभूषा धारण की हुई थी। ड्रम की तरह खम, बांसुरी की भांति सिंफू, वायलिन की तरह के वाद्य सिरजा के साथ यह सुंदर नृत्य किया गया। महिला कलाकारों के हाथों में एक तरह के झुनझुने जैसा पारंपरिक वाद्य जाबखिन भी था। आगंतुकों ने राजस्थान के आए तेजपाल दल ने कच्छी घोड़ी नृत्य का भी आनंद लिया। इसके साथ ही छत्तीसगढ़ के संजू सेन ने लोक वाद्यों का मंचीय प्रदर्शन कर भारत की उन्नत परंपरा की सशक्त झांकी पेश की। इसमें उन्होंने लुप्त होते कई वाद्यों का प्रदर्शन प्रभावी ढंग से कर लोगों को उनके प्रति जागरूक किया गया। इसमें बासं का झरना, बांस का नगाड़ा, दफड़ा गुदुम, डमऊ, टिमकी, तुर्रा खंजेरी, नगाड़ा, मांदर-मांदरी, ढोल, करसाल, खिचकिरी, टिककी, तास शंख, भैर धनकुल, बांसुरी, मोहरी, अल्गोजवा जैसे वाद्यों को साक्षात सुनना कला रसिकों के लिए स्वर्णिम अवसर रहा। उमेश निर्मलकर के निर्देशन में हुए छत्तीसगढ़ के भुंजिया आदिवासी नृत्य पेश किया गया। भुंजिया लोग साल के पत्ते, तेंदू के पत्ते, महुआ के फूलों से श्रंगार करते हैं। सभी तरह के मांगलिक अवसरों पर यह नृत्य किया जाता है। इसमें पुरुष धनुष बाण और महिलाएं डलिया लेकर एक साथ घेरे में नृत्य करते हैं। लखीमपुर के राम किशन के दल ने सखिया लोकनृत्य पेश किया। इसमें लाल रंग की साड़ी पहने महिलाओं ने मंजीरे के साथ नृत्य किया। आकर्षक आभूषण पहने नृत्यांगनाओं ने मंदरा ढोल की थाप पर नृत्य किया। इसमें लगभग 70 साल की तुलसी देवी ने भी मंदरा का वादन किया। झारखंड से आए कन्हैया सिंह के दल ने बुक्सा जनजाति का नृत्य किया। होरी के अवसर पर यह नृत्य किया जाता है। इनके नृत्य में पर्वतीय संस्कृति की झलक दिखी। पुरुषों ने उत्तराखंड की पारंपरिक टोपी धारण की हुई थी जबकि महिलाएं गुलुबंद पहने थी। उत्तर प्रदेश के सहरिया नृत्य पेश किया गया। इसमें कलाकारों ने मोरपंख के गुच्छे लेकर नृत्य किया। उड़ीसा का घुड़का नृत्य वासुदेव के निर्देशन में किया गया। इसमें कलाकारों ने बांस के मुकुट, मुर्गा, पिंजड़ा लेकर नृत्य कर प्रशंसा हासिल की।
इसके साथ ही बुधवार 20 नवम्बर को उ.प्र. लोक एवं जनजाति संस्कृति संस्थान के निदेशक अतुल द्विवेदी और जनजाति विकास विभाग उ.प्र. की उप निदेशक डॉ. प्रियंका वर्मा के संयोजन में संगोष्ठी हुई। इसका विषय “जनजाति विकास में गैर सरकारी संस्थाओं की भूमिका” था। इसमें विशेषज्ञ के रूप में आमंत्रित “बेडशीट मैम” के रूप में लोकप्रिय राशीदा अंसारी ने अपनी बात प्रभावी रूप से रखते हुए संदेश दिया कि “हमारा सामान हमारी पहचान”। उन्होंने यह भी कहा कि अगर एनजीओ के पदाधिकारी ईमानदार होंगे तो सफलता अवश्य मिलती है। उन्होंने अपना उदाहरण देते हुए बताया कि साल 2003 में उन्होंने इस दिशा में पहल की थी तब जनजाति की महिलाएं सामने ही नहीं आती थीं। वह बस घर में रहकर ही काम करना चाहती थी। जब उन्होंने विधिवत संगठन बनाते हुए प्रशिक्षण दिलवाकर विभिन्न प्रदर्शनियों में उनका सामान रखवाया तो आशा से अधिक विक्रय हुई। इसी मुहिम का परिणाम है कि आज जनजाति समाज की महिलाएं पहले की तुलना में तीन गुना अधिक पारिश्रमिक पा रही हैं बल्कि अब उनकी झिझक भी दूर हो गई है। इसके साथ ही उन्होंने यह भी बताया कि यू-ट्यूब जैसे विभिन्न सोशल माध्यमों ने उनके हस्तशिल्प को बहुत लोकप्रिय किया है। इसी क्रम ने बृजभान मरावी ने भी बताया कि उनकी संस्था किस तरह सरकारी योजनाओं का लाभ जनजाति समाजों तक पहुंचा रहे हैं। इस संगोष्ठी में बौद्धमती बिमलादेवी, पवन कुमार, विनोद शाह मरकाम, अनीता, मालती देवी, कमला देवी, भगवान सिंह सहित अन्य ने सहभागिता की।

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