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(अरूण कुमार राव)
गोरखपुर : : “भगवा ध्वज’ ही क्यों लगता है ‘संघ’ की ‘शाखा’ में? किसी अन्य रंग का क्यों नहीं? इसके पीछे संघ की अपनी एक स्पष्ट सोच है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने ‘भगवा ध्वज’ को अपना गुरु माना है। किसी भी व्यक्ति के विकास में गुरु की महती भूमिका होती है। ‘गुरु’ शब्द का विवेचन करें तो पाते हैं कि यह ‘गु’ और ‘रु’ दो अक्षरों से मिलकर बना है जिसमें ‘गु’ का अर्थ है ‘अंधकार’ और ‘रु’ का अर्थ है ‘प्रकाश’। गुरु वह है जो व्यक्ति को अंधकार से प्रकाश की ओर ले जाता है। गुरु की बड़ी महिमा है। शास्त्रों में कहा गया है कि गुरु ईश्वर से भी बड़ा है। गुरु ही हमें ज्ञान कराता है। प्रथम गुरु माँ है। फिर विद्यालय में कई और गुरु हमें मिलते हैं। इसी प्रकार से हर व्यक्ति के कार्यक्षेत्र में भी गुरु मिलते हैं जो व्यक्ति को सम्बन्धित कार्यक्षेत्र में पारंगत करते हैं।” ये बातें आज दि १५ जून २०२५ को गोरखपुर के बुद्धनगर क्षेत्र के अंतर्गत ‘वाटर स्पोर्ट्स काॅम्प्लेक्स’ के सामने नवगठित ‘वीर सावरकर शाखा’ को ध्वज प्रदान किए जाने के कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में सम्बोधित करते हुए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रान्त प्रचारक प्रमुख डाॅ अवधेश जी ने कहीं।
आगे डाॅ अवधेश जी ने कहा कि “संघ ने किसी व्यक्ति-विशेष को अपना गुरु नहीं माना, क्योंकि व्यक्ति नश्वर है, उसकी अपनी सीमाएँ हैं, काल के प्रवाह में उसके अन्दर कुछ कमियाँ भी आ सकती हैं। हमारा गुरु ऐसा हो जो चिरकाल तक एक-सा रह सके, जिसके अन्दर कभी कोई कमी न परिलक्षित हो।” ‘भगवा’ की चिरन्तनता को व्याख्यायित करते हुए कहा कि “4 युग होते हैं – सतयुग, त्रेता द्वापर और कलियुग। भगवान सूर्य सतयुग में भी थे, वे जब उदित होते हैं तो आसमान का रंग भगवा होता है। यज्ञ की ज्वाला का रंग भगवा होता है। त्रेता युग में आइए .. हनुमान जी के हाथों में जो पताका दिखती है वह भगवा रंग की है। द्वापर में भगवान श्रीकृष्ण के रथ पर लगे ध्वज का रंग था भगवा। कलयुग की हम बात करें तो पाएँगे कि छत्रपति शिवाजी महाराज, महाराणा प्रताप या अन्यान्य प्रतापी राजाओं के राजध्वज का रंग भगवा ही था। न तो उस समय ‘राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ’ था, न ही ये लोग ‘स्वयंसेवक’ थे। इस ‘भगवा’ रंग की महत्ता तथा स्वीकार्यता आदि काल से चली आ रही है। भगवा रंग का वस्त्र हर कोई नहीं धारण कर सकता, क्योंकि इसके प्रति हमारे मन में एक श्रद्धा का भाव जुड़ा हुआ है। जो पहनता है उसके आगे हम स्वतः नतमस्तक हो जाते हैं। इतिहास देखें तो रानियों के जौहर के समय रंग भगवा होता था। भगवा रंग त्याग का प्रतीक है। भगवा रंग बलिदान का प्रतीक है। संघ ने नहीं तैयार किया है भगवा ध्वज को। इस प्राचीन प्रतीक को संघ ने अपनाया है, अपना गुरु माना है। संघ की आत्मा है भगवा ध्वज। गुरु की महिमा अनन्त है। यह परम पवित्र भगवा ध्वज जो सबकी श्रद्धा का केंद्र बन सके, ऐसा गुरु हमने स्वीकार किया है। जो सर्वव्यापी हो, सर्वकालिक हो, ऐसा गुरु स्वीकार किया है।”
“भारत विविधता का देश है। कई बार अपने व्यक्तिगत जीवन में किसी व्यक्ति को हम गुरु मान लेते हैं और यदि समय के प्रवाह में किसी कारण से उसके प्रति हमारी श्रद्धा डगमगाती है, तो सोचिए क्या स्थिति होती होगी। गुरु ऐसा जो सर्वव्यापक हो, इसलिए संघ ने ऐसे ‘तत्व’ को गुरु माना है, किसी ‘व्यक्ति’ को नहीं। सिख पंथ में दसवें गुरु (गुरु गोविंद सिंह जी) के बाद गुरु की परंपरा समाप्त कर दी गई। सम्पूर्ण विश्व का मार्गदर्शन करने वाला जो तत्व है वह है परम पवित्र ‘भगवा ध्वज’। यह श्रद्धा एक दिन में नहीं बनी है, हजारों हजार वर्ष लगे हैं इसे स्थापित होने में।”
“जो भारत की संस्कृति का परिचय कराता है, वह है संघ की शाखा। सम्पूर्ण समाज के लिए जीना सिखाती है संघ की शाखा। शाखा स्वयंसेवक का ‘चार्जिंग केंद्र’ है। संघ की शाखा अंधकार से प्रकाश की ओर चलने की बात करती है।”
मुख्य अतिथि के उद्बोधन के पूर्व राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, बुद्धनगर के माननीय संघचालक डाॅ विजय जी ने ‘वीर सावरकर शाखा’ को औपचारिक रूप से ‘ध्वज’ प्रदान किया। इस अवसर पर नगर संघचालक जी ने इस शाखा के लिए ‘मुख्य शिक्षक’ के रूप में रमन जी तथा ‘शाखा कार्यवाह’ के रूप में आदित्य जी को नामित किए जाने की घोषणा की। आज के इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि तथा नगर संघचालक के साथ-साथ माननीय प्रान्त संघचालक डाॅ महेन्द्र अग्रवाल जी मंचासीन थे। कार्यक्रम के समापन पर विद्याभूषण जी, डाॅ महेन्द्र अग्रवाल जी, डाॅ अवधेश जी, डाॅ विजय कुमार तिवारी जी, राजकिशोर मिश्र जी तथा इं संकर्षण त्रिपाठी जी के द्वारा वृक्षारोपण किया गया। कार्यक्रम में अच्छी संख्या में स्वयंसेवक उपस्थित थे।