होली आई रे
होली आई रे, आई रे,
होली आई रे।
मेरा तन- मन भीगे,
चोली ह्वै गयी लाल, दिखाई रे।
होली आई रे, आई रे,
होली आई रे।
आजु न माने,
मेरा जिया, होली पै रास रचाई रे।
होली आई रे, आई रे,
होली आई रे।
बरसाने की गोरी,
राधा कान्हाँ को भायी रे,रंग लगाई रे।
होली आई रे, आई रे,
होली आई रे।
वृन्दावन से हुरियारे आए,
होली की धूम मचाई रे,मस्ती छाई रे।
होली आई रे, आई रे,
होली आई रे।
बागनु में कोयलिया बोलै,
खेतनु में पियराई रे, मन भायी रे।
होली आई रे, आई रे,
होली आई रे।
गालों का रंग गुलाबी ह्वै गयो,
पीत उढ़नियाँ छीनी, राधा देखि शरमाई रे।
होली आई रे, आई रे,
होली आई रे।
मेरा दिल है दिवाना,
चहुँदिशि खुशियाँ छाईं रे,कन्हाई रे।
होली का त्यौहार मनोरम,
सबको हो सुखदाई रे, बधाई रे।
होली आई रे, आई रे,
होली आई रे।
डॉ. विश्वम्भर दयाल अवस्थी
“वाचस्पति”
खुर्जा, बुलंदशहर (उ. प्र.)
स्वरचित, मौलिक अप्रकाशित रचना।