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…..होली की कहानी….

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होली का पर्व मनाने के पीछे कथा बहुत पुरानी है लेकिन आज के समय में भी उतनी है प्रासंगिक है जितना पहले हुआ करती थी वैसे तो सारे धर्मों के सभी पर्व सद्भावना और आपसी मेलजोल से मनाए जाते हैं लेकिन फिर भी सभी पर्वों के पीछे एक विशेष प्रेरक प्रसंग होता जरूर है होली का त्यौहार भक्त प्रहलाद व उनके पिता राक्षस राज हिरण्यकश्यप के गुरुर को तोड़ने और प्रहलाद की आस्था के जीतने की कहानी याद दिलाता है राक्षस राज हिरण्यकश्यप अपने पुत्र प्रहलाद को विष्णु भक्ति से हमेशा रोकते थे क्योंकि वह अपने आप को भगवान समझते थे होली पर राक्षसराज हिरण्यकश्य की बहन होलिका भक्त प्रहलाद को गोद में लेकर आग में बैठ गई थी उसे वरदान प्राप्त था कि आग उसे जला नहीं सकती लेकिन अधर्म का साथ देने की वजह से होलिका जल गई और भक्त प्रहलाद बच गए हिरण्यकश्यप को उसके पापों की सजा देने के लिए और उसका अंत करने के लिए भगवान स्वयं नृसिंह अवतार के रूप में पृथ्वी पर उतरे और अपने नखों से उसका पेट चीर कर उसका वध कर दिया भगवान के हाथों मरने की वजह से राक्षस राज हिरण्यकश्यप को स्वर्ग की प्राप्ति हुई। जबकि भक्त प्रहलाद की आस्था और विश्वास की जीत में अधर्म के ऊपर धर्म की एक बार फिर स्थापना की। इसीलिए हम इसी कथा को मानकर हम होलिका दहन करते हैं। एवं अधर्म पर धर्म की जीत का उत्सव धुलेंडी के रूप में मनाते है। रंग-बिरंगे रंगों से होली खेली जाती है। गुजिया मिठाई और भांग की ठंडाई से मीठा मुंह किया जाता है खूब झूमते हैं नाचते गाते होली का उत्सव मनाते हैं।

(लता सेन इंदौर)

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