***जेडीन्यूज़ विज़न ***
मुख्य अतिथि -माननीय सुदामा शरद अध्यक्ष विश्व हिन्दी महाघोष
अध्यक्षता -सुप्रसिद्ध भाषा विद् डॉ चित्तरंजन कर
विशिष्ट अतिथि – नर्मदा प्रसाद मिश्र नरम निदेशक विश्व हिन्दी महाघोष
राष्ट्रीय उपाध्यक्ष- डॉ दीप्ति गोस्वामी, प्राध्यापिका राजिम महाविद्यालय
स्वागत भाषण – डॉ विभाषा मिश्रा, अध्यक्ष, प्रांतीय इकाई छत्तीसगढ़
मंच संचालन एवं आभार प्रदर्शन -डाॅ. शुभ्रा ठाकुर
शपथ दिलाई राष्ट्रीय अध्यक्ष श्री सुदामा शरद ने-
“हम भारतवासी भाई और बहन हैं। हमें अपने देश,भाषा और संस्कृति से प्यार है।हम सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञा करते हैं कि राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए तन ,मन ,धन एवं मनसा वाचा कर्मणा से प्रयास करेंगे।हिन्दी को राष्ट्रभाषा घोषित कराने,उसके पल्लवन और साहित्य संवर्धन हेतु अजीवन संकल्पित रहेंगे। हमारा समूचा जीवन हिन्दी के लिए समर्पित है। जयहिंद -जय भारत।”
प्रांतीय पदाधिकारी –
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अध्यक्ष -डाॅ.विभाषा कर
उपाध्यक्ष -डॉ.भवानी प्रधान
कोषाध्यक्ष -श्रीमती सुनीता पाठक
महासचिव -श्री पतंजलि मिश्र(राष्ट्रीय सचिव)
सचिव -डॉ.शुभ्रा ठाकुर
अन्य पदाधिकारियों की नियुक्ति राज्य स्तरीय अध्यक्ष एवं पदाधिकारियों की सहमति से बाद में की जाएगी।
हिन्दी की वैश्विक स्थिति पर प्रकाश डालते हुए श्री सुदामा शरद ने हिन्दी की संवैधानिक प्रक्रिया पर विभिन्न पहलुओं से चर्चा की। हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने के लिए युद्ध स्तर पर वातावरण बनाने पर जोर दिया।अपने गौरवमयी अभिव्यक्ति के साथ गीत और ग़ज़ल सुनाकर श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया-
” बढ़ने लगी है जिंदगी की प्यास,तुम खुश हो न अब ।
लौट आए हम तुम्हारे पास,तुम खुश हो न अब।।
कुआं खाई जंगलों में,जो भटकता फिर रहा था।
घर लौट कर आया मेरा विश्वास,तुम खुश हो न अब ।।
तर गई फिर भी अहल्या,इन दिनों चिंतित बहुत ।
कब खत्म होगा राम का बनवास,तुम खुश हो न अब।।
सूरज निकलता इन दिनों रातों से अक्सर पूंछ कर
बिनमिले हमसे चलाजाएगा फिर मधुमास तुम खुश हो न अब
बैरंग जिसको तुमने कल लौटा दिया था रात में
वही ख़ुद को इन दिनों कहता है तुलसीदास तुम खुश हो न अब।
सदियों से फजलों ने लिखा अकबर ने जो चाहा वही
महाराणा अब लिखेंगे राष्ट्र का इतिहास तुम खुश हो न अब
गीत ग़ज़लों छंद साखी चुटकुलों नवगीत में,
जातीय वोट में बंटे अनुप्रास तुम खुश हो न अब।।”
ग़ज़ल के उपरांत एक उत्कृष्ट गीत का प्रसाद दिया –
नेह तुम्हारा सियाराम के सुमिरन जैसा है।
मिलने का तुमसे मन तुलसी रहिमन जैसा है।।
सिथिल देह से साथ छिबुलकी आरक्षण मांगे
अर्थ धर्म से काम मोक्ष तक फिर से कौन पढ़ें।
प्रीति सनातन वर्तमान से क्षण दो क्षण मांगे
चंदन -चंदन तुम कब से हो हमको मालूम है।
अपना तो पुरुषार्थ द्वार के दहिमन जैसा है
देह -नगर में ठगी -ठगी हैं वैरागी यादें
विजय जुलूस निकाल रही है अनुरागी यादें
धीरज अब तैयार खड़ा है आत्मसमर्पण को
बीहड़ त्याग शहर आएंगी चिरबागी यादें
ब्यग्र चित्त ने ज्ञापन सौंपा मांग अजब रख दी
संयम हठयोगी बन बैठा लछिमन जैसा है
एक जोगन जीवन से हारी थी पर अब राजी
जीत वही है,हार वही है,और वही बाजी
अनुबंधों की मर्यादा को फिर -फिर याद करे
शपथपत्र लिख छोड़ चुकी है अपनी नाराजी
तीरथ कोई नया बनाओ करके देशाटन
मन मेरा तो अब तक अलख निरंजन जैसा है।।”
कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि का उद्बोधन -सारांश –
“हमारा हिन्दी साहित्य सूर -तुलसी जैसे संतों का साहित्य है।इसे मीरा ने दुलारा है, विद्यापति -रसखानि ने इसमें माधुर्य भरा है। प्रेमचंद ,निराला और धूमिल ने अत्याचारों के विरुद्ध अपनी कलम उठाकर जनमानस का आह्वान किया है। हमारा हिन्दी साहित्य विश्वसाहित्य से किसी तरह कमतर नहीं है।
आज मनोनीत समस्त पदाधिकारियों को ढ़ेर सारी हार्दिक शुभकामनाएं एवं बधाइयां।आशा है कि राष्ट्रभाषा हिन्दी के लिए आप सभी प्रतिबद्ध रहेंगे।” नर्मदा नरम
इस गौरवमय कार्यक्रम में पदाधिकारियों के अतिरिक्त सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री रामेश्वर शर्मा, श्रीमती आभा बघेल, श्रीमती अनीता झा, श्री नरेन्द्र गोस्वामी, डॉ पुरुषोत्तम चंद्राकर, श्री यदु, डॉ वर्मा आदि की उपस्थिति महत्वपूर्ण रही।
क्वचित अपि –