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अभी हाल ही में संपन्न हुए महाराष्ट्र विधानसभा के चुनाव के परिणामों की यदि निष्पक्षता के साथ समीक्षा की जाए तो पता चलता है कि इन चुनावों में देवेंद्र फडणवीस महाराष्ट्र की जनता की पहली पसंद रहे । इसलिए यदि वह प्रदेश के मुख्यमंत्री बने हैं तो यह बहुमत के जनमत का स्वागत ही माना जाएगा। देवेंद्र फडणवीस ने भाजपा को सत्ता में लाने के लिए अत्यधिक परिश्रम किया। इसमें दो मत नहीं हैं कि यदि भाजपा इस चुनाव को अकेले लड़ने का भी निर्णय लेती तो भी वह भारी बहुमत से जीत हासिल करती। लोगों ने फडणवीस को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय ले लिया था।
फडणवीस ने बहुत ही सावधानी के साथ आगे बढ़ने का निर्णय लिया। उन्होंने सारे चुनाव को हिंदुत्व पर केंद्रित किया और अपनी चुनावी सभाओं में स्थान- स्थान पर हिंदू जागरण की बात कही। उन्होंने अपनी क्षमता, कौशल, अपना पुरुषार्थ और अपना परिश्रम सब कुछ इस चुनाव के लिए झोंक दिया था। उनकी इस प्रकार की संघर्षशील मनोवृत्ति को देखकर उनके बारे में कहा जा सकता है कि :-
इतिहास स्वयं को पाने का साधन सबसे उत्तम है।
साधना बनती साधन से, ऋषियों का कथन उत्तम है।।
फलवती साधना हो उसकी जिसका साधन सुथरा हो।
इतिहास उसी का होता है, जो धर्म हित रण में उतरा हो।।
यदि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव का परिणाम थोड़े सा भी कांग्रेस और उसके समर्थक दलों के अनुकूल होता तो इस बार भी षड्यंत्र के आधार पर भाजपा से सत्ता छीनी जा सकती थी। परंतु महाराष्ट्र की जनता ने स्पष्ट और प्रचंड बहुमत देकर प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी की नीतियों में विश्वास व्यक्त करते हुए सत्ता की चाबी उनकी पार्टी को सौंप दी। इसके उपरांत भी यदि एकनाथ शिंदे महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बने रहने का संघर्ष कर रहे थे तो उनका यह संघर्ष निरर्थक ही था। जिस समय वह उद्धव ठाकरे को छोड़कर भाजपा में आए थे, तब सत्ता एक समझौते के आधार पर उन्हें मिलनी निश्चित हुई थी। जिस पर यदि भाजपा उन्हें बीच में सत्ता से हटाकर या उनके विधायक तोड़कर सरकार अपनी बनाने की तैयारी करती या ऐसा प्रयास करती तो निश्चय ही वह अनैतिक आचरण होता। परंतु बीजेपी ने ईमानदारी से उनके साथ दिया । अब प्रदेश और लोकतंत्र के हित में स्वस्थ राष्ट्र नीति का तकाजा है कि श्री एकनाथ शिंदे उपमुख्यमंत्री रहते हुए वैसे ही सरकार चलाने में सहायक हों जिस प्रकार देवेंद्र फडणवीस उनके लिए सहायक हुए थे।
देवेंद्र फडणवीस को चाहिए कि वह छत्रपति शिवाजी महाराज और वीर सावरकर जी की पुण्य भूमि से हिंदुत्व के स्वरों को तेज करें। हिंदू राष्ट्रनीति अपनाकर सभी संप्रदायों और मजहबों को साथ लेकर चलें। परंतु तुष्टीकरण नाममात्र के लिए भी नहीं होना चाहिए । देश के बहुसंख्यक समाज के अधिकारों को छीनकर तुष्टीकरण के नाम पर या वोट की राजनीति करते हुए दूसरे संप्रदायों को देना भी एक प्रकार की सांप्रदायिकता है। इस प्रकार का पक्षपात शासन की नीतियों में दूर तक भी नहीं होना चाहिए। ज्ञात रहे कि कांग्रेस की पक्षपाती तुष्टिकरण की राजनीति के कारण ही उसे सत्ता से लोगों ने दूर कर दिया है। यदि भाजपा भी कांग्रेस की बी टीम होकर आगे बढ़ेगी तो उसका हश्र भी लोग इसी प्रकार का कर सकते हैं। शासक वही सफल होता है जो जनभावना के अनुरूप शासन करने का निर्णय लेता है।
इसके अतिरिक्त शिक्षा के क्षेत्र में भी व्यापक सुधार की आवश्यकता है। छत्रपति शिवाजी महाराज और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा जिस प्रकार संघर्ष करते हुए मुगल बादशाहत को हिंदुस्तान से विदा किया गया था वह सारा संघर्ष पाठ्यक्रम में सम्मिलित होना चाहिए। संस्कृत और हिंदी को भी बच्चों को पढ़ने के लिए प्रेरित किया जाए। इसके साथ ही राष्ट्रवादी चिंतनधारा के लेखकों , कवियों और साहित्यकारों की रचनाओं को भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए। भाषा के आधार पर शिवाजी महाराज की पवित्र भूमि से किसी भी प्रकार का विरोध उभरना उनकी भावनाओं का अपमान करना है। क्योंकि उन्होंने स्वयं ने शासन में चल रही अरबी, फारसी शब्दावली की छंटनी करने के लिए एक विशेष मंत्रालय का गठन किया था। जिसने संस्कृतनिष्ठ शब्दों को प्रशासन में लागू किया था। शिवाजी महाराज का वह निर्णय आज भी प्रासंगिक है और उसे पूरी निष्ठा के साथ लागू करने की आवश्यकता है।
गौ रक्षा के लिए भी देवेंद्र फडणवीस को विशेष साहसिक निर्णय लेने की आवश्यकता है। जिस प्रकार आसाम सरकार ने ऐतिहासिक और साहसिक निर्णय लेकर गौ मांस पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाया है, उसी प्रकार का निर्णय देवेंद्र फडणवीस लेंगे तो पूरे देश में उनके विषय में अच्छा संकेत जाएगा। संस्कार आधारित शिक्षा भारत की शिक्षा नीति का उद्देश्य रहा है। जिसका लक्ष्य मानव निर्माण होता है। वास्तव में मानव निर्माण ही राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है। इस दृष्टिकोण से वेद, उपनिषद ,रामायण, गीता , महाभारत आदि की मानव निर्माण संबंधी शिक्षाओं को पाठ्यक्रम में सम्मिलित कराया जाना नितांत आवश्यक है। श्री देवेंद्र फडणवीस को चाहिए कि वह भारतीय धरोहर को सुरक्षित रखने के लिए इतिहास की परंपरा का सम्मान करते हुए इतिहास लेखन के क्षेत्र में क्रांतिकारी निर्णय लें। अभी तक भाजपा की ओर से भी इतिहास लेखन के लिए केवल शोर ही मचाया गया है, उतना काम नहीं किया गया, जितना अपेक्षित था।
जातिवाद को उभारकर जिस प्रकार कुछ धर्मनिरपेक्ष राजनीतिक दल अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने का काम कर रहे हैं, वह प्रदेश के बहुसंख्यक समाज के लिए अत्यंत खतरनाक है। अब जबकि भाजपा ने ‘ बंटेंगे तो कटेंगे’ के आधार पर जन समर्थन प्राप्त किया है तो स्पष्ट है कि महाराष्ट्र की जनता जातीय आधार पर बंटना नहीं चाहती। वह एकता का परिचय देना चाहती है और उसका स्पष्ट संदेश है कि जो राजनीतिक दल हिंदू समाज को बांटने की राजनीति कर रहे हैं ,उनके इस प्रकार के प्रयास को सफल नहीं होने दिया जाए।
निश्चय ही श्री देवेंद्र फडणवीस को इस समय अपनी प्राथमिकताओं को तय करना होगा। प्रदेश के बहुसंख्यक समाज की भावनाओं का भी सम्मान करना होगा। इसके अतिरिक्त बहुसंख्यक समाज के भीतर सुरक्षा का भाव भी पैदा करना होगा। उन्हें मुसलमानों को भी यह संकेत देना होगा कि उनकी नीतियां आतंकवाद और आतंकवादी गतिविधियों को बढ़ावा देने वाले लोगों के विरुद्ध कठोर हैं अन्यथा मानवीय आधार पर प्रत्येक मुसलमान उन सभी अधिकारों को लेने का सामान अधिकारी है जो हमारे देश के संविधान ने देश के प्रत्येक नागरिक को प्रदान किये हैं। हम श्री देवेंद्र फडणवीस के महाराष्ट्र जैसे प्रमुख राज्य का मुख्यमंत्री बनने पर अपनी हार्दिक शुभकामनाएं प्रेषित करते हैं।
(डॉ राकेश कुमार आर्य)
( लेखक सुप्रसिद्ध इतिहासकार और भारत को समझो अभियान समिति के राष्ट्रीय प्रणेता हैं।)