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_हमें कौन सा निरंतर यज्ञ या यज्ञ-पूजन करना चाहिए और क्यों? भगवान आज स्नेहपूर्वक और प्रेमपूर्वक स्पष्ट शब्दों में हमारा मार्गदर्शन करते हैं।_
मनुष्य को बुरी प्रवृत्तियों से छुटकारा पाने के लिए निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। मन में निहित विरासत में मिले बुरे गुणों को बलिवेदी पर त्याग देना चाहिए। इन लक्षणों में सबसे बुरे लक्षण घृणा और ईर्ष्या हैं। वे तीव्र स्वार्थ से उत्पन्न होते हैं। ये चीते के गुण हैं और इन्हें इंसान में जगह नहीं मिलनी चाहिए। कुछ लोग यह दिखावा करने की कोशिश करते हैं कि उन्होंने क्रोध, घृणा, ईर्ष्या और घमंड पर काबू पा लिया है। ऐसे व्यक्तियों द्वारा अपनाई जाने वाली युक्तियाँ लोमड़ी की चालाक चालें ही होती हैं। चूँकि ये लक्षण समय-समय पर प्रकट होते हैं, इसलिए इन्हें तुरंत त्याग देना चाहिए। इसके लिए निरंतर आंतरिक यज्ञ (यज्ञ पूजा) की आवश्यकता होती है, बाहरी यज्ञ के विपरीत जो वर्ष में केवल एक बार एक विशेष स्थान पर किया जाता है। आंतरिक यज्ञ हर समय, हर जगह और हर परिस्थिति में किया जाना चाहिए। इस यज्ञ की यज्ञवेदी हममें से प्रत्येक के भीतर है। जब भी कोई बुरा विचार या इच्छा उत्पन्न हो तो उसे निर्दयता से ख़त्म कर देना चाहिए। निरंतर सतर्कता और निरंतर प्रयास से ही दैवीय कृपा अर्जित की जा सकती है।
– भगवान श्री सत्य साईं बाबा जी द्वारा दिव्य प्रवचन