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लखनऊ : : राजधानी में कलेक्ट्रेट के सन्निकट यह कोठी रोशनुद्दौला है जो अब 200 वर्ष की होने जा रही है । नवाब नासिरुद्दीन के वजीर रोशनुद्दौला ने यह कोठी बनवाई थी । समय बीतते यह कोठी नवाब की रखैल को दे दी गयी, फिर अंग्रेज आये तो यहां कचहरी खुल गयी । बाद में यहां पुरातत्व का दफ्तर और जिले के कुछ अन्य सरकारी दफ्तर खुल गये । परन्तु अब यह उजाड़ और वीरान है , सम्भवतः पुरातत्व विभाग इसका अनुरक्षण कर रहा है ।
इस सुन्दर और भव्य, इण्डो-यूरोपीय मिश्रित वास्तुशिल्प की कोठी को एक हेरिटेज होटल में बदला जा सकता है परन्तु सबसे बड़ी बाधा इस कोठी तक पहुंचने और वहां से निकलने का है । कैसर बाग बस अड्डा , जिला कचहरी , राजस्व परिषद की भारी भीड़ , संकरी सड़कों पर वकीलों की पार्किंग होने से एक चींटी को भी सड़क पार करने में घण्टों लग जाते होंगे । मुख्य सड़क से कोठी तक का एप्रोच रोड भी आजकल के ट्रैफिक को देखते हुए अत्यंत संकीर्ण होने से इस कोठी को यूरोपीय हेरिटेज होटलों की तरह कमाऊ और पर्यटन रुचि का विषय बनाने में भारी अड़चन है ।
इस कारण से अब यह जब तक वजूद में है , जनता के टैक्स मनी को खाने वाली एक इमारत के रूप में ही रहेगी , जनता को इससे कोई फायदा नहीं होने वाला है ।
हमारे देश में हेरिटेज भवनों को लेकर हमारा फण्डा आजादी के 75 वर्ष बाद भी नेहरूवादी ही है – विकास के पैसे से सफेद हाथी पालते रहो । इनसे जनसेवा करके कमाई की जा सकती है पर कमाओ नहीं यही हमारा नवाबी फण्डा है ।